भारत एक ऐसा देश है जहां हर धर्म और पंथ के लोग रहते हैं और इसी वजह से यहां कई पूजा स्थल हैं। यहां नदियों, समुद्रों, पहाड़ों, अग्नि, जल, पशु-पक्षियों में से प्रत्येक के लिए मंदिर बने हैं। इन विदेशी मंदिरों में सास-बहू मंदिर है। यह सुनने में जितना अनोखा लगता है, उतना ही यह अपने निर्माण में भी अनूठा है। तो आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी दिलचस्प बातें।
जहां यह स्थित है? यह मंदिर राजस्थान के उदयपुर से 23 किमी दूर नागदा गांव में स्थित है। जो भगवान विष्णु को समर्पित है।
राजा ने अपनी पत्नी और बहू के लिए बनवाया था यह मंदिर:
इतिहास हमें बताता है कि सास-बहू के लिए कोई मंदिर नहीं बनाया गया है। लेकिन उस समय कछवाहा वंश के राजा महिपाल का शासन था। उनकी पत्नी भगवान विष्णु की भक्त थीं। इसलिए उनकी पूजा के लिए महिपाल ने भगवान विष्णु का एक मंदिर बनवाया जिसका नाम सहस्रबाहु मंदिर रखा गया। कुछ वर्षों के बाद रानी के बेटे की शादी हो गई और उसकी बहू ने भगवान शिव की पूजा की। इसलिए राजा ने अपनी बहू के लिए उसी मंदिर के पास भगवान शिव का एक मंदिर बनवाया। उसके बाद दोनों मंदिरों को सहस्रबाहु मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।
सहस्रबाहु से सास-बहू आई:
भगवान विष्णु को सबसे पहले यहां मंदिर में स्थापित किया गया था, इसलिए इसका नाम सहस्रबाहु पड़ा। जिसका अर्थ है ‘हजार भुजाओं वाला’। कालांतर में लोग शब्द का सही उच्चारण न कर पाने के कारण प्राचीन सहस्रबाहु मंदिर सास-बहू मंदिर बन गया।
करीब 1100 साल पुराना है यह मंदिर:
इस मंदिर का निर्माण 1100 साल पहले कच्छपघाट वंश के राजा महिपाल और रत्नपाल ने करवाया था। तभी से यह मंदिर सास-बहू के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मंदिर में भगवान विष्णु की सौ भुजाओं वाली मूर्ति है, जो 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी है, जिसके कारण इस मंदिर को सहस्रबाहु मंदिर भी कहा जाता है।
मंदिर को रामायण के दृश्यों से सजाया गया है:
वाहु के लिए बनाए गए मंदिर की छत को आठ नक्काशीदार अष्टकोणीय महिलाओं की आकृतियों से सजाया गया है। यह मंदिर सास-बहू के लिए बने मंदिर से थोड़ा छोटा है। मंदिर की दीवारों को रामायण के कई दृश्यों से सजाया गया है। मंदिर के एक मंच पर भगवान ब्रह्मा, शिव और विष्णु के चित्र उकेरे गए हैं और दूसरे मंच पर भगवान राम, बलराम और परशुराम के चित्र खुदे हुए हैं।
मुगलों ने मंदिर को रेत से किया सील:
मुगलों ने इस मंदिर को चूने और बालू से ढक दिया था। जब मुगलों ने किले पर कब्जा कर लिया, तो उन्होंने मंदिर में सास-बहू की मूर्तियों को नष्ट कर दिया और मंदिर को भी चूने और रेत से भर दिया और मंदिर को बंद कर दिया। तभी से यह मंदिर रेत के टापू जैसा दिखने लगा। लेकिन जब 19वीं सदी में अंग्रेजों ने किले पर कब्जा कर लिया तो उन्होंने मंदिर को आम जनता के लिए फिर से खोल दिया।