होली 2023 हितार्थ पटेल/डांग : डांग में डांगी जनजाति का सबसे बड़ा त्योहार होली है। फागण सूद अष्टम से यहाँ हेली उत्सव का वातावरण देखने को मिलता है। आमतौर पर फाल्गुन सूद पूनम की होली होती है। दांगी लोग इस दिन को ‘शिमगा’ कहते हैं।
दिवाली के बाद व्यस्त हो जाते हैं दांगी आदिवासी लेकिन आमतौर पर वह होली से दस दिन पहले काम पर जाना बंद कर देते हैं। अहम से लेकर रंग पंचम तक अधिकांश डांगी, चाहे पुरुष हों या महिला, ढोल की थाप पर नृत्य करते हैं। बारिश के दिन यहां के लाखो शाम से अगले दिन तक यानी पूरी रात नाचते हैं।
‘शिमगा’ हेली का दूसरा नाम है। पूनम के होली मनाने के बाद रंग पंचम तक दांगी लोग होली के गीतों और वादों की मस्ती में डूबे नजर आते हैं. घर को सजाना, गाना, खाना और नाचना, होली का त्योहार मनाने का तरीका है। ‘वसंत का मौसम हो गया है, अब तुम खेत में काम करना शुरू करो’, यही संदेश दांगी जनजातियों को ‘होली’ देता है।
दांगी महिलाएं होली जलाने से पहले, डोंगरीची मौली डी.डी.डी…. डूंगर इस गीत को गाती हैं और मावली से हेलीबाई की शादी में शामिल होने का अनुरोध करती हैं। उसके बाद सभी नर-नारी एक-दूसरे की कमर पर हाथ रखकर पूरी रात मंडलियों में घूमते, नाचते, गीत गाते हुए व्यतीत करते हैं। जलाऊ लकड़ी की कोई कमी नहीं है क्योंकि डांग क्षेत्र एक वन क्षेत्र है। इसलिए डांग गांव में जगह-जगह बड़ी-बड़ी होली जलाई जाती है। आदिवासी मुरहूत देखकर ही होली जलाते हैं। दांगीजन इसे ‘होलीबाई नू लगना’ कहते हैं।
कांचे मास ओनिस, फागुन मास ओनिस बाई फागुन मास ओनिस.. के के घटा लसीले?, बाई के के घट लसीला? खम्ब भेंट लसीला, बाई खम्ब भेंट लसीला.. होली के गीतों की संख्या बहुत कम है। जो गीत होते हैं उन्हें दंगभर में एक धुन में गाया जाता है।