Tuesday, March 21, 2023

होलिका जहां जलकर हुई थी खाक, अब ऐसा दिखता है वह स्थान…

होलिका दहन को लेकर ऐसी धार्मिक मान्‍यता है कि भगवान विष्‍णु के भक्‍त प्रह्लाद को उनकी बुआ जलाने के लिए अग्नि पर बैठी थीं। लेकिन उसमें प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका जलकर राख हो गई। क्‍या आपको पता है कि यह स्‍थान वर्तमान में कहां हैं जहां होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठी थी। आइए आपको बताते हैं कहां है यह जगह और क्‍या हैं यहां को लेकर धार्मिक मान्‍यताएं।

होलिका जहां भक्‍त प्रह्लाद को जलाने के लिए गोद में लेकर अग्नि पर बैठी थी, जानते हैं कहां है यह स्‍थान ? बताते हैं कि यहां होलिका का जन्‍म हुआ था और उसे यहां की बेटी माना जाता है और होलिका दहन के वक्‍त प्रह्लाद के साथ होलिका मैय्या की जय भी बोला जाता है। यहां के बारे में ऐसी मान्‍यता है कि जो भी यहां आकर होलिका के कुंड में अपनी नाक रगड़ता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। यूपी के झांसी जिले में स्थित है यह जगह। इस कस्‍बे का नाम है एरच। झांसी से 80 किमी दूर एरच नाम के कस्‍बे में होलिका की प्रतिमा स्‍थापित है। इस मूर्ति में वह भक्‍त प्रह्लाद को गोद में लिए बैठी है। इसके साथ ही यहां होलिका कुंड भी बना है, जहां हर साल होलिका दहन किया जाता है।

श्रीमद् भागवत पुराण स्कंद में इस स्‍थान का जिक्र किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि हिरण्यकश्यप ने इस स्‍थान को अपनी राजधानी बताया था और प्राचीनकाल में इस स्‍थान का नाम एरिकच्छ था। यहां बेतवा नदी के ऊपर एक प्राचीन टीला बना हुआ है। ऐसी मान्‍यता है कि इसी टीले पर प्रह्लाद का जन्‍म हुआ था। भगवान विष्‍णु के प्रति अपने पुत्र प्रह्लाद की आस्‍था और भक्ति को देखकर हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित होता था। उसने प्रह्लाद को मारने का कई बार प्रयास किया। कई बार उसे पहाड़ से नीचे ग‍िरवा दिया तो कभी सांपों की कोठरी में बंद करवा दिया। लेकिन प्रह्लाद का कुछ न बिगड़ा। अंत में थकहारकर उसने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी।

यहां होलिका को मानते हैं बेटी

यहां के लोग होलिका को बेटी की तरह मानते हैं और होली के अवसर पर उसके मरने का दुख मनाते हैं। बताते हैं कि होलिका का जन्‍म एरिकच्छ में ही हुआ था और उसका पुत्र राहु था। इसलिए एरिकच्‍छ में कभी राहु काल नहीं लगता। होलिका को ब्रह्माजी ने 3 वरदान दिए थे। पहला वरदान यह था कि वह अग्नि और जल समेत 5 तत्‍वों को अपने वश में कर सकती थी। दूसरा किसी भी जीव‍ित वस्‍तु को आकर्षित कर सकती थी और तीसरा उसके पास एक ऐसी चमत्‍कारिक चुनरी थी जिसको ओढ़ने पर आग भी इंसान को नहीं जला सकती थी।

यहां आज भी मौजूद है होलिका कुंड

यहां के बारे में कहा जाता है कि आज भी वह अग्नि कुंड यहां स्थित है जिसमें होलिका प्रह्लाद को लेकर बैठी थी। हर साल होली के मौके पर हजारों लोग यहां आकर मुराद मांगते हैं और उस कुंड में अपनी नाक रगड़ते हैं। यहां के लोग होलिका के परम भक्‍त हैं और उन्‍हें देवी की तरह पूजते हैं। उनका यह मानना है कि इस गांव पर होलिका की ही कृपा है कि नदी के किनारे सटे होने पर यहां आज तक बाढ़ नहीं आई और न ही कभी आग लगी। यहां तक कि गांव की महिलाएं होलिका दहन नहीं देखती क्‍योंकि उनका यह मानना है कि कोई भी मां अपनी बेटी को जलते नहीं देख सकती।

इस पहाड़ी से हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को फेंका था

यहां पर एरच से 3 किमी दूर स्थित है ढीकांचल पर्वत। जहां के बारे में कहा जाता है कि इस पहाड़ी से ही हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को फेंका था। तब भी उनका कुछ नहीं बिगड़ा और जिस स्‍थान पर वह गिरे थे वहां एक कुंड बन गया था जिसे अब प्रह्लाद द्यौ के नाम से जाना जाता है। कहते हैं बेतवा नदी का पानी सूख जाता है, लेकिन इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता।

Related Articles

Stay Connected

258,647FansLike
156,348FollowersFollow
56,321SubscribersSubscribe

Latest Articles